16-03-92  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

होली मनाना अर्थात् दृढ़ संकल्प की अग्नि में कमज़ोरियों को जलाना और मिलन की मौज मनाना।

अव्यक्त बापदादा होली हंस आत्माओं के प्रति बोले:

आज रूहानी बगीचे के मालिक बापदादा डबल बगीचा देख रहे हैं। (आज स्टेज पर बहुत सुन्दर बगीचा सजाया हुआ है) एक तरफ है प्रकृति की सुन्दरता और दूसरे तरफ है रूहानी रूहे गुलाब बगीचे की शोभा। ड्रामा में आदि काल सतयुग में प्रकृति की सतोप्रधान सुन्दरता आप मास्टर आदि देव, आदि श्रेष्ठ आत्माओं को ही प्राप्त होती है। इस समय अन्तिम काल में भी प्रकृति की सुन्दरता देख रहे हो। लेकिन आदि काल और अन्तिम काल में कितना अन्तर है! आपके सतयुगी राज्य में प्रकृति का स्वरूप कितना श्रेष्ठ सतो प्रधान सुन्दर होगा! वहाँ के बगीचे और यहाँ आपके बगीचे में कितना अन्तर है! वह रीयल खुशबू अनुभव की है ना? फिर भी प्रकृति पति आप श्रेष्ठ आत्मायें हो। प्रकृति पति हो, इस प्रकृति के खेल को देख हर्षित होते हो। चाहे प्रकृति हलचल करे, चाहे प्रकृति सुन्दर खेल दिखाए - दोनों में प्रकृति-पति आत्माएं साक्षी हो खेल देखती हो। खेल में मज़ा लेते हैं, घबराते नहीं है। इसलिए बापदादा तपस्या द्वारा साक्षीपन की स्थिति के आसन पर अचल अडोल स्थित रहने का विशेष अभ्यास करा रहे हैं। तो यह स्थिति का आसन सबको अच्छा लगता है या हलचल का आसन अच्छा लगता है? अचल आसन अच्छा लगता है ना। कोई भी बात हो जाए चाहे प्रकृति की, चाहे व्यक्ति की दोनों अचल स्थिति के आसन को ज़रा भी हिला नहीं सकते हैं। इतने पक्के हो ना या अभी होना है?

प्रकृति के भी पांच खिलाड़ी हैं और माया के भी पांच खिलाड़ी हैं। इन दस खिलाड़ियों को अच्छी तरह से जानते हो ना? खिलाड़ी खेल के बिना रहेंगे क्या? कभी कोई खिलाड़ी सामने आ जाता है, कभी कोई सामने आ जाता है। आजकल भी पुरानी दुनिया में खेल देखने के बहुत शौकीन है ना? कितना प्यार से खेल देखते हैं। वो हैं पुरानी दुनिया वाले और आप हो संगमयुगी ब्राह्मण आत्माएं तो खेल देखना एंजाय करना है या घबराना है? कोई गिरता है, कोई गिराता है, लेकिन खेल देखने वाले को गिरता हुआ देख भी मजा आता और विजय प्राप्त करता हुआ देख भी मजा आता है। तो यह भी बहुत बड़ा खेल है। सिर्फ आसन को नहीं छोड़ो बस। कितना भी कोई हिलाए लेकिन आप शक्तिशाली आत्माएं हिल नहीं सकती हो। तो बापदादा आज हर एक रूहानी गुलाब को दूख रहे हैं। जब बगीचे में बुलाया है तो बगीचे में पत्ते देखेंगे या फूलों को देखेंगे? यह भी अच्छा सजाया है। मेहनत करने वालों की कमाल अच्छी है। लेकिन बापदादा रूहानी फूलों को देख रहे हैं। वैरायटी तो हैं ना। कोई बहुत सुन्दर रंग रूप वाले हैं। रंग भी है, रूप भी है। ओर कोई रंग, रूप और खुशबू वाले होंगे, कोई सिर्फ रंग रूप वाले। रंग और रूप तो सभी बच्चों में आ गया है। क्योंकि बाप के संग का रंग तो सबको लग गया है। कोई व्यवहार की बातों में, पुरूषार्थ की बातों में सम्पूर्ण सन्तुष्टता नहीं भी हो लेकिन बाप के संग का रंग सबको अति प्यारा लगता है। इसलिए रंग सभी में आ गया है और रूप भी परिवर्तन हो गया है क्योंकि ब्राह्मण आत्माएं बन गयीं। भल कैसी भी पुरुषार्थी आत्मा है लेकिन ब्राह्मण आत्मा बनने से रूप ज़रूर बदलता है। ब्राह्मण आत्मा की चमक सुन्दरता हर एक ब्राह्मण आत्मा में आ जाती है। इसलिए रंग और रूप सबमें दिखाई दे रहा है। खुशबू नम्बरवार है। खुशबू है सम्पूर्ण पवित्रता। वैसे तो जो भी ब्राह्मण बनते हैं, ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी कहलाते हैं। कुमार और कुमारी बनना अर्थात् पवित्र बनना। पवित्रता की परिभाषा अति सूक्ष्म है। सिर्फ ब्रह्मचर्य नहीं। तन से ब्रह्मचारी बनना इसको सम्पूर्ण पवित्रता नहीं कहते। मन से भी ब्रह्मचारी हो अर्थात् मन भी सिवाय बाप के और किसी भी प्रकार के लगाव में नहीं आए। तन से भी ब्रह्मचारी, सम्बन्ध में भी ब्रह्मचारी, संस्कार में भी ब्रह्मचारी। इसकी परिभाषा अति प्यारी और अति गुह्य है। इसका विस्तार फिर सुनायेंगे। आज तो होली मनानी है ना, गुह्य पढ़ाई नहीं हैं, आज मनाना है।

होली मनाने वाले कौन हो? होली हंस हो। होली हंस कितने प्यारे है! हंस सदा पानी में तैरने वाले होते हैं। होली हंस भी सदा ज्ञान जल में तैरने वाले हो। उड़ने वाले और तैरने वाले। आप सभी भी उड़ना और तैरना जानते हो ना, ज्ञान मनन करना इसको कहेंगे ज्ञान अमृत में तैरना ओर उड़ना अर्थात् सदा ऊंची स्थिति में रहना। दोनों जानते हो ना? सभी के मन में बाप से प्यार तो 100% से भी आगे है और बाप का प्यार भी हर एक बच्चे से, चाहे वह गिरता है, चाहे चढ़ता भी है, खेल करता है फिर भी बाप का प्यार है। बाप खेल देखकर समझते हैं कि यह थोड़ा नटखट बच्चा है। सब बच्चे एक जैसे तो नहीं होते ना। कोई नटखट, कोई गंभीर, कोई रमणीक होते हैं, कोई बहुत फास्ट नेचर के होते हैं। फिर भी हैं तो बच्चे ना। बच्चे शब्द ही अति प्यारा है। जैसे आप सबके लिए बाप शब्द प्यारा है, तो बाप के लिए बच्चे प्यारे हैं। बाप कभी भी कोई बच्चे से दिल शिकस्त नहीं होते हैं। सदा शुभ उम्मीदें रखते हैं। अगर कोई किनारा भी कर लेते हैं फिर भी बापदादा उसमें भी उम्मीद रखते हैं कि आज नहीं तो कल आ जायेंगे। कहाँ जायेंगे? जैसे शारीरिक हिसाब-किताब में कोई ज्यादा बीमार भी हो जाता है, उनको ठीक होने में भी ज्यादा समय लगता है। और जो थोड़ा समय बीमार होता है तो वह जल्दी ठीक हो जाता है। लेकिन है तो बीमार। कैसा भी बीमार हो स्थूल रीति प्रमाण भी बीमार से कभी उम्मीद उतारी नहीं जाती है। सदा उम्मीद रखी जाती है - आज नहीं तो कल ठीक हो जायेगा। इसलिए बापदादा कोई भी बच्चे से नाउम्मीद नहीं होते हैं। सदा शुभ आशायें रखते हैं कि आज थोड़ा सा ढीला है, कल होशियार हो जायेगा। जब मंज़िल एक है, बाप एक है तो कहाँ जायेंगे सिवाए बाप के? फिर भी वर्सा हर आत्मा को बाप से ही मिलना है। चाहे बाप को गाली भी दे तो भी बाप मुक्ति का वर्सा तो दे ही देंगे। सारे विश्व की सर्व आत्माओं को चाहे मुक्ति, चाहे जीवन मुक्ति का वर्सा ज़रूर मिलना है। क्योंकि बाप सृष्टि पर अवतरित हो बच्चों को वर्से से वंचित नहीं कर सकते हैं। बाप को वर्सा देना ही है। चाहे लेवे, चाहे नहीं लेवे बाप को देना ही है। और सर्व आत्माओं को बाप द्वारा वर्सा मिला है तब तो बाप कहकर पुकारते हैं ना। बाप का अर्थ ही है वर्सा देने वाला। चाहे किसी भी धर्म में चले गये हैं फिर भी फादर कह याद तो करते हैं ना। एक आत्मा भी वर्से के सिवाए रह नहीं सकती। तो साकार सृष्टि पर पार्ट बजाते बच्चों को वर्सा न दे तो बाप कैसे कहेंगे? लेकिन आप डायरेक्ट वर्सा लेते हो, पहचान से लेते हो। आपका डायरेक्ट कनेक्शन है। चाहे निमित्त साकार माध्यम ब्रह्मा बना लेकिन ब्रह्मा से योग नहीं लगाते, योग बाप से लगाते हैं। ब्रह्मा बाप भी कहते - बाप को याद करो। यह नहीं कहते - मुझे याद करो। कभी भी सिवाए बाप के फुल वर्सा और कोई सम्बन्ध में मिल नहीं सकता। आप डायरेक्ट बाप से सम्बन्ध जोड़ वर्से का अधिकार तीनों कालों में प्राप्त करते हो। अभी भी वर्सा मिल रहा है ना! शक्तियों का, गुणों का वर्सा मिल रहा है। मिल गया है? और मुक्तिधाम में भी कहाँ रहेंगे? समीप रहेंगे ना! तो अभी भी वर्सा है, मुक्तिधाम में भी और फिर 21 जन्म का भी वर्सा है। तो तीनों कालों में वर्से के अधिकारी बनते हो। लोग कहते हैं ना आप सबको कि आपकी जीवनमुक्ति से हमारी मुक्ति अच्छी है। आप तो चक्कर में आयेंगे, हम तो चक्कर से छूट जायेंगे। आप फलक से कह सकते हो कि मुक्ति का वर्सा तो हमें भी मिलेगा लेकिन हम मुक्ति के बाद फिर जीवनमुक्ति का वर्सा लेंगे। डबल मिलता है! मुक्तिधाम से वाया तो करेंगे ना, तो डायरेक्ट कनेक्शन होने के कारण वर्तमान और फिर मृत्यु के बाद और फिर नया शरीर लेते तीनों ही काल वर्से के अधिकारी बनते हो। इतना नशा है?

आज होली मना रहे हो ना। होली जलाई भी जाती है और मनाई भी जाती है। पहले जलाई जाती है फिर मनाई जाती है। होली मनाना अर्थात् कुछ जलाना और कुछ मनाना। जलाने के बिना मनाई नहीं जाती। तो दृढ़ संकल्प की अग्नि द्वारा पहले अपनी कमज़ोरी को जलाना है तब मनाने की मौज अनुभव कर सकेंगे। अगर जलाया नहीं तो मनाने की मौज का अनुभव सदा काल नहीं रहेगा। होली शब्द का अर्थ भी याद रहे तो जला भी लिया फिर भी सदा काल नहीं रहेगा। होली शब्द में जलाना भी है, मनाना भी है। दोनों ही अर्थ हैं। होली शब्द तो पक्का है ना? तो होली अर्थात् हो-ली, बीती सो बीती। जो बात गुज़र गई उसको कहते हैं हो-ली । जो होना था वह हो-ली । तो बीती को बीती करना माना होली जलाना। और जब बाप के सामने आते हो तो कहते हो मैं बाप की हो ली, हो गई। तो मनाया भी ओर हो ली, बीती सो बीती। बीती को भूल जाना यह है जलाना। तो एक ही होली शब्द में जलाना और मनाना है। गीत गाते हो ना मैं तो बाप की हो ली। पक्के हो ना? क्योंकि बापदादा ने सबका तपस्या का पोतामेल देखा। तपस्या अगर कभी भी कम हुई तो उसका कारण क्या बना है? बीती को बीती करने में बिन्दी के बजाए क्वेश्चन मार्क लगा दिया। और छोटी सी गलती करते हो, छोटी लेकिन नुकसान बहुत बड़ा होता है। वह क्या गलती करते हो? जिसको भूलाना है उसको याद करते हो और जिसको याद करना है उसको भूला देते हो। तो भूलाना आता है ना? बाप को भूलने नहीं चाहते हो तो भी भूल जाते हो और जिस समय भूलना चाहिए उस समय क्या कहते हो - भूलना चाहते हैं लेकिन भूलते नहीं, बार बार याद आ जाता है। तो याद करना और भूलना दोनों ही बाते आती हैं। लेकिन क्या याद करना है और क्या भूलना है? जिस समय भूलना है उस समय याद करते हो और जिस समय याद करना है उस समय भूल जाते हो। छोटी सी गलती है ना? तो इसको हो ली कर दो, जला दो। अंश से खत्म कर दो। ज्ञानी तू आत्मा हो ना? ज्ञानी का अर्थ ही है समझदार। और आप तो तीनों कालों के समझदार हो। इसलिए होली मनाना अर्थात् इस गलती को जलाना। जो भूलना है वह सेकेण्ड में भूल जाये और जो याद करना है वह सेकेण्ड में याद आए। कारण सिर्फ बिन्दी के बजाए क्वेश्चन मार्क है। क्यों सोचा और क्यू शुरू हो जाती है। ऐसा वैसा क्यों क्या बड़ी क्यू शुरू हो जाती है। सिर्फ क्वेश्चन मार्क लगाने से। और बिन्दी लगा दो तो क्या होगा? आप भी बिन्दी, बाप भी बिन्दी और व्यर्थ को भी बिन्दी, फुल स्टॉप। स्टॉप भी नहीं, फुल स्टॉप। इसको कहा जाता है होली। और इस होली से सदा बाप के संग के रंग की होली, मिलन होली मनाते रहेंगे। सबसे पक्का रंग कौन सा है? यह स्थूल रंग भल कितने भी पक्के हों लेकिन सबसे श्रेष्ठ और सबसे पक्का रंग है बाप के संग का रंग। तो इस रंग से मनाओ। आपका यादगार गोप गोपियों के होली मनाने का है। उस चित्र में क्या दिखाते हैं? बाप और आप दोनों संग संग होली खेलते हैं। एक-एक गोप वा गोपी के साथ गोपी वल्लभ दिखाते हैं। तो यह संग हो गया ना! साथ वा संग अविनाशी होली है बाप के संग के रंग की यादगार होली रास के साथ के रूप में दिखाई है। तो होली मनाने आती है ना? यह हो गया, क्या करूँ, चाहते नहीं है लेकिन हो जाता है... आज से इसकी होली जलाओ, समाप्त करो। मास्टर सर्वशक्तिवान कभी संकल्प में भी यह सोच नहीं सकते। अच्छा -

डबल विदेशी भी अच्छी सेवा की वृद्धि में आगे बढ़ रहे हैं। बाप से भी प्यार है, तो सेवा से भी प्यार है। सेवा अर्थात् स्व और सर्व आत्माओं की साथ-साथ सेवा। पहले स्व क्योंकि स्व स्थिति वाले ही अन्य आत्माओं को परिस्थितियों से निकाल सकते हैं। सेवा की सफलता ही है - स्व और सर्व के बैलेन्स की स्थिति। ऐसे कभी भी नहीं कहो कि सेवा में बहुत बिज़ी थे ना इसीलिए स्व की स्थिति का चार्ट ढीला हो गया। एक तरफ कमाया, दूसरे तरफ गँवाया तो बाकी बचा क्या? इसलिए जैसे बाप और आप कम्बाइन्ड हो, शरीर और आत्मा कम्बाइन्ड है, आपका भविष्य विष्णु स्वरूप कम्बाइन्ड है, ऐसे स्व-सेवा और सर्व की सेवा कम्बाइन्ड हो। इसको अलग नहीं करो, नहीं तो मेहनत ज्यादा और सफलता कम मिलती है। अधूरा हो गया ना!

इस ग्रुप के चार्ट में भी सेकेण्ड नम्बर ज्यादा है। फर्स्ट भी कम है तो चौथा पांचवा भी कम है, सेकेण्ड तक गये है तो सेकेण्ड के बाद आगे क्या है? फर्स्ट है ना। सेकेण्ड तक कदम रख लिया है बाकी अभी एक कदम फर्स्ट में रखना है। उसकी विधि है - कम्बाइन्ड स्वरूप की सेवा। बच्चे सेवा का भी प्लैन बना रहे हैं ना। बापदादा ने तो इशारा दिया ही था कि अभी समय प्रमाण सेवा जो की वो बहुत अच्छी की। इससे बाप को, अपने को प्रत्यक्ष किया, वायुमण्डल और वायब्रेशन परिवर्तन हुआ। स्नेही और सहयोगी आत्माएं चारों ओर काफी संख्या में नजदीक आई। अभी ऐसी सेवा करो जो एक द्वारा अनेकों की सेवा हो। सारे विश्व को सन्देश देना है। एक एक को सन्देश देते जो राजधानी में आने वाली आत्माएं हैं वो अपना भाग्य बनाकर आगे आ गई हैं। लेकिन अभी तो सन्देश देने की संख्या निकले हुए राज्य अधिकारी बच्चों से ज्यादा है। राज्य फैमली में आने वाले वा राज्य तख्त पर बैठने वाले दोनों तो अच्छे निकाले हैं। राज्य अधिकारी भी आप लोग ही बनेंगे ना। आप बनेंगे या औरों को बनायेंगे? औरों को राज्य अधिकारी बनायेंगे और आप क्या बनेंगे?

तो अभी चारों ओर सन्देश पहुँचाने के लिए ऐसी आत्माओं को समीप लाओ जो एक अनेकों के निमित्त बन जाये तब सन्देश देने की फास्ट गति होगी। इसलिए बापदादा ने पहले भी इशारा दिया कि जो जहाँ ज्यादा में ज्यादा संख्या है, चाहे इन्स्टीट्युशन है, चाहे इन्डस्ट्रीज़ हैं, दोनों में संख्या ज्यादा में होती है। तो ऐसी आत्माओं को निमित्त बनाओ जो वह आपके सेवा के साथी बनकर औरों को समीप लायें। आप सन्देश देते आगे बढ़ते जाओ। उन्हों को निमित्त बनाओ सन्देश देने के लिए। अभी तो आप आत्माओं की स्टेज के अनुसार आपको बनी बनाई स्टेज प्राप्त होगी। औरों को सेवा में तन-मन-धन लगाने का चांस दो। चाहे मन लगायें, चाहे धन लगायें, तब तो सतयुगी प्रजा में आयेंगे। उन्हों को बीज बोने दो आप लोगों ने तो बीज बो लिया ना, फल पा रहे हो। अब ऐसा ग्रुप बनाओ जो एक मास के लिए, दो मास के लिए सेवा के ग्रुप में कोई किस तरफ, कोई किस तरफ सन्देश देने के लिए निकले। एक ही समय पर 7-8 ग्रुप बनाओ और अपने एरिया में एक-एक ग्रुप सेवा के लिए निकले। चाहे छोटे देश हों, चाहे बड़े देश हों। जो जो जिसके नज़दीक नज़दीक पड़ते हैं, वहाँ से ग्रुप तैयार करके उस ग्रुप को भेजो लेकिन वह ग्रुप भी सेवा करने की विधि यही बुद्धि में रखे कि ऐसे मुख्य को जगायें जो औरों को जगाते रहें। वहाँ से ही तैयार करो ओर आगे बढ़ते जाओ। क्योंकि जब भी सेवा बढ़ाने चाहते हो तो पहला प्रश्न उठता है हैन्ड्स कहाँ से आयेंगे? जगह जगह पर ऐसी आत्माऐं तैयार करो और फिर तैयार हुए को और उम्मीदवार हैन्ड्स को विशेष समय निकाल कर ट्रेनिंग दो और फिर वह चलाते रहें। और जो निमित्त है वो चक्कर लगाते रहें। पुराने सेन्टर्स तो पक्के हो गये हैं, तो नयों में चक्कर लगाते नयों को पुराना बनाओ। योग्य हैण्ड्स बनाने का साधन है - समय प्रति समय हैन्ड्स को ट्रेनिंग देना। जहाँ भी नजदीक हो, चाहे 8 हो, चाहे 10 हों, लेकिन ट्रेनिंग समय प्रति समय मिलना बहुत ज़रूरी है। जैसे पहले भी भारत में भी कभी युथ ग्रुप, कभी एज्युकेशन के ग्रुप, कभी डॉक्टर्स के ग्रुप बनाये थे, ऐसे रहे हुए स्थानों पर ग्रुप बना कर लक्ष्य रखो कि यहाँ से ही कोई को निमित्त बनाना है। निमित्त बनाते जाओ, आगे बढ़ते जाओ। अभी सम्बन्ध संपर्क तो आपका अच्छा बन गया है। सभी के में प्रभाव भी अच्छा है। लक्ष्य रखने से ऐसी सहयोगी आत्माएं भी मिल जायेंगी। कांफ्रेंस, योग शिविर,  भाषण करके आना है - यह नहीं, हैन्ड्स तैयार करना है लक्ष्य यह हो। चाहे गीता पाठशाला के माफिक चलाओ। धीरे-धीरे गीता पाठशाला से उपसेवाकेन्द्र,  उपसेवाकेन्द्र से केन्द्र बन जायेगा। लेकिन जो भी ग्रुप कहाँ भी जाये कम्बाइन्ड सेवा के बिना सफलता असम्भव है। ऐसा नहीं कि जाओ सेवा करने और लौटो तो कहो माया आ गई, मूड ऑफ हो गया, डिस्टर्ब हो गये। इसके कारण जो निमित्त आत्माएं है वो सेवा में भेजने से भी डरती हैं। हिम्मत नहीं रखती हैं। सोचना पड़ता है कि औरों की सेवा करते खुद तो ढीला नहीं हो जायेगा! इसलिए यह अन्डर लाइन करो। सेवा में सफलता या सेवा में वृद्धि का साधन है स्व और सर्व की कम्बाइन्ड सेवा।

सभी डबल विदेशियों ने सभी स्थानों से पत्र भी बहुत यादप्यार के लाये हैं। बापदादा के पास तीन प्रकार के पत्र पहुँचे हैं। एक तो है अति स्नेह के, खुशखबरी के और दूसरे हैं पुरूषार्थ में आगे बढ़ने का लक्ष्य कैसे रखा है, उस समाचार के पत्र और तीसरे हैं थोड़ा-थोड़ा बीच-बीच में नटखट होने के। कोई ने क्या, कोई ने क्या लिखा है। लेकिन बापदादा सभी पत्र लिखने वाले बच्चों को यही रेसपान्ड कर रहे हैं कि सदा कम्बाइन्ड सेवा और स्थिति अर्थात् बाप और आप यह कम्बाइन्ड स्थिति, कम्बाइन्ड सेवा और सदा फरिश्ते स्वरूप का सम्पूर्ण लक्ष्य सामने रखे। आज पुरुषार्थी,  कल फरिश्ता। सदा फरिश्ता स्वरूप ऐसे सामने हो जैसे स्वयं का स्वरूप सदा स्मृति में रहता है अपना स्थूल स्वरूप कभी भूलता नहीं है ना। तो जैसे अपना स्थूल स्वरूप सदा याद रहता है वैसे अपना फरिश्ता स्वरूप सदा ही स्पष्ट सामने हो। बस अभी अभी बने कि बने। फरिश्ते थे, फरिश्ते हैं और कल्प कल्प फरिश्ते हमको ही बनना है। तो हिम्मत, उमंग, उत्साह से उडते चलो। साफ दिल से लिखते बहुत अच्छा है, यह डबल विदेशियों की विशेषता है। स्पष्ट है। छिपाने वाले नहीं है। स्पष्ट का अर्थ है श्रेष्ठ। चेक करने की शक्ति बहुत अच्छी है, डबल विदेशियों में। अभी सिर्फ चेन्ज करने की शक्ति उतनी मात्रा में रखो। चेकिग की मात्रा ज्यादा है, चेंज की थोड़ी कम है तो इसका भी बैलेन्स रखो। स्पष्ट बहुत दिल से देते हैं और लेते भी हैं। रिटर्न उसी समय मिल जाता है। अगर सच्ची दिल से कोई अपनी कमज़ोरी भी लिखता है तो बाप क्षमा का सागर उसी समय रिटर्न में क्षमा कर देता है। बहुत प्यार के कार्ड, बहुत प्यार के पत्र बापदादा देखते हैं। गिफ्ट देने वाले स्वयं ही बाप की गिफ्ट हैं। गिफ्ट देना अर्थात् लिफ्ट लेना। तो सिर्फ गिफ्ट देना नहीं, लेकिन लिफ्ट लेना भी है। अच्छा।

कल्प पहले का वर्सा लेने के लिए नये नये सभी बच्चे पहुँच गये हैं इसके लिए बापदादा वेलकम कर रहे हैं, और नये बर्थ के बर्थ डे की मुबारक दे रहे हैं।

अच्छा - चारों ओर के सर्व कम्बाइन्ड स्थिति में स्थिति रहने वाले, सदा कम्बाइन्ड सेवा में अथक सेवा से निमित्त बनने वाले, सदा बीती को बीती कर बाप के संग के रंग की होली मनाने वाले हंस आत्माएं, सदा तीनों काल के वर्से के खुशी में रहने वाले, सदा साक्षी बन प्रकृति बन प्रकृति और माया का खेल देखने वाले - ऐसे सदा विजयी, सदा उड़ती कला वाले, सदा फरिश्ता स्वरूप सामने अनुभव करने वाले, श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

पार्टियों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात

1. जैसे आवाज में आना अति सहज लगता है ऐसे ही आवाज से परे हो जाना इतना सहज है? यह बुद्धि की एक्सरसाइज़ सदैव करते रहना चाहिए। जैसे शरीर की एक्सरसाइज़ शरीर को तन्दुरूस्त बनाती है ऐसे आत्मा की एक्सरसाइज़ आत्मा को शक्तिशाली बनाती है। तो यह एक्सरसाइज़ आती है या आवाज में आने की प्रैक्टिस ज्यादा है? अभी-अभी आवाज में आना और अभी-अभी आवाज से परे हो जाना - जैसे वह सहज लगता है वैसे यह भी सहज अनुभव हो। क्योंकि आत्मा मालिक है। सभी राजयोगी हो, प्रजायोगी तो नहीं? राजा का काम है आर्डर पर चलाना। तो यह मुख भी आपके आर्डर पर हो - जब चाहो तब चलाओ और जब चाहो तब नहीं चलाओ। आवाज से परे हो जाओ लेकिन इस रूहानी एक्सरसाइज़ में सिर्फ मुख की आवाज से परे नहीं होना है। मन से भी आवाज में आने के संकल्प से परे होना है। मुख से चुप हो जाओ और मन में बातें करते रहो। आवाज से परे अर्थात् मुख और मन दोनों की आवाज से परे, शान्ति के सागर में समा जायें। यह स्वीट साइलेन्स की अनुभूति कितनी प्यारी है! अनुभवी तो हो ना। एक सेकेण्ड भी आवाज से परे हो स्वीट साइलेन्स की स्थिति में स्थित हो जाओ। तो कितना प्यारा लगता है?

साइलेन्स प्यारी क्यों लगती है? क्योंकि आत्मा का स्वधर्म ही शान्ति है, ओरिजनल देश भी शान्ति देश है। इसलिए आत्मा को स्वीट साइलेन्स बहुत प्यारी लगती है। एक सकेण्ड में भी आराम मिल जाता है। कितनी भी मन से, तन से थके हुए हो लेकिन अगर एक मिनट भी स्वीट साइलेन्स में चले जाअसे तो तन और मन को आराम ऐसा अनुभव होगा जैसे बहुत समय आराम करके कोई उठता है तो कितना फ्रेश होता है! कभी भी कोई हलचल होती है, लड़ाई झगड़ा या हल्ला-गुल्ला कुछ भी होता है तो एक दो को क्या कहते है? शान्त हो जाओ। क्योंकि शान्ति में आराम है। तो आप भी सारे दिन में समय प्रति समय, जब भी समय मिले स्वीट साइलेन्स में चले जाओ। अनुभव में खो जाओ - बहुत अच्छा लगेगा। अशरीरी बनने का अभ्यास सहज हो जायेगा। क्योंकि अन्त में अशरीरीपन का अभ्यास ही काम में आयेगा। सेकेण्ड में अशरीरी हो जायें। चाहे अपना पार्ट भी कोई चल रहा हो लेकिन अशरीरी बन आत्मा साक्षी हो अपने शरीर का भी पार्ट देखे। मैं आत्मा न्यारी हूँ, शरीर से यह पार्ट करा रही हूँ। यही न्यारेपन की अवस्था अन्त में विजयी या पास विद् ऑनर का सर्टिफिकेट देंगी। सभी पास विथ ऑनर होने वाले हो? मजबूरी से पास होने वाले नहीं। कभी टीचर को भी एक दो मार्क देकर पास करना पड़ता है। ऐसे पास होने वाले नहीं हैं। खुशी-खुशी से अपने शक्ति से पास विद् ऑनर होने वाले। ऐसे हो ना? जब टाइटल भी डबल विदेशी है तो मार्क्स भी सबसे डबल लेंगे ना! भारतवासियों को क्या नशा है? भारतवासियों को फिर अपना नशा है। भारत में ही बाप आते हैं। लन्दन में तो नहीं आते हैं ना। (आ तो सकते हैं) अभी तक ड्रामा में पार्ट दिखाई नहीं दे रहा है। ड्रामा की भावी कभी भगवान भी नहीं टाल सकता। ड्रामा को अथॉरिटी मिली हुई है। अच्छा।

सभी मौज मनाने वाले हो? बीच-बीच में थोड़ा मूँझने वाले तो नहीं। जहाँ मौज हे वहाँ मूंझना नहीं। जब युग ही मौज का है, तो मौज के समय भी कोई मूंझता रहे तो मौज कब मनायेंगे? कितने जन्म मूंझते रहे? बाप के सम्बन्ध में भी कितना मूँझते रहे? कृष्ण है, हनूमान है, राम है ...कोन है बाप? मूँझते रहे ना! अपने भाग्य में भी मूँझते रहे। हम तो हैं ही चरणों की धूल। यही मानते रहे ना। बाप के परिचय में भी मूँझते रहे तो व्यवहार में भी मूँझते रहे, परिवार में भी मूँझते रहे। लेकिन अभी मौज। अभी किसी भी बात में मूँझने का मार्जिन ही नहीं है। त्रिकालदर्शी आत्मा कभी भी किसी बात में मूँझ नहीं सकती। तीनों काल क्लीयर हैं। जब मंजिल और रास्ता क्लीयर हेता है तो कोई मूँझता नहीं। त्रिकालदर्शी आत्माएं कभी कोई बात में सिवाए मौज के और कोई अनुभव नहीं करतीं। चाहे परिस्थिति मूँझाने वाली हो लेकिन ब्राह्मण आत्मा उसको भी मौज में बदल लेगी। इतनी ताकत हे? या कहेंगे कि क्या करें मैं तो मूँझती नहीं हूँ, लेकिन बात ऐसी थी..। बात पावरफुल है या आप पावरफुल हो? बात को खिलौना समझ लो तो मौज में खेलेंगे। बड़ी बात है.. यह है.. वह है.. तो खेल नहीं समझेंगे, मुश्किल समझेंगे।कितने बारी यह ब्राह्मण जीवन का पार्ट पास किया है? अनगिनत बार। तो कोई नई बात नहीं है जो मूँझो। इसलिए कोई भी काम शुरू करो पहले यह चेक करो कि हर कर्म मौज में कर रही हूँ? मज़ा आ रहा है कर्म योग से? कैसा भी काम हो मजे से करो। चाहे कोई हार्ड वर्क हो, जॉब करने जाते हो - बहुत हार्ड है इसीलिए कहते हैं ना कि अभी जॉब(नौकरी) छुड़ा दो। छोड़ने चाहते हो ना? छोड़ना नहीं है लेकिन हर कर्म को मजे में परिवर्तन करना है। डबल विदेशी समझते हैं कि अभी काम छोड़कर मधुबन में आ जायें। लेकिन सभी मधुबन में बैठ जायेंगे तो विश्व परिवर्तन कौन करेगा? विश्व के कोने-कोने में इसीलिए ही गये हो। किसी भी कोने में जाओ, कोई न कोई ब्राह्मण आत्मा ज़रूर है।

सभी होली मनायेंगे ना। होली मनाना अर्थात् मौज मनाना। आपकी तो रोज होली है। रोज उत्सव है। अच्छा है, अपने भाग्य के गीत गाते रहो। वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य! भगवान का बनाना - इससे बड़ा भाग्य और क्या होगा! इसलिए सदा गीत गाते रहो और ससदा खुशी के झूले में झूलते रहो। झूलना आता है या चक्कर आता है? चक्कर में नहीं आना। मौज से झूलते रहो। डबल विदेशियों को अभी तक यह गोल्डन चांस है जो वर्ष-वर्ष आते हो। भारत वालों को तो दो-तीन साल में टर्न मिलता है।तो लक्की हो। अच्छा।

2. संगमयुगी ब्राह्मणों का कर्तव्य वा सेवा ही है खुश रहना और खुशी बांटना।इतनी खुशी जमा की है तो औरों को भी बांटो? थोड़ा सा स्टॉक तो नहीं इकठ्ठा किया है जो खर्च हो जाये और खाली हो जाओ। बापदादा ने पहले भी सुनाया है कि जैसा नाज़ुक समय नजदीक आता जायेगा तो अनेक आत्मायें आपसे थोड़े समय की खुशी की मांगनी करने के लिए आयेंगी। इतनी सेवा करनी है जो कोई भी खाली हाथ नहीं जाये। जितनी खुशी बांटेंगे उतनी खुशी बढ़ती जायेगी। तो यह देना, देना नहीं, लेना है। अच्छा है, सबके चेहरे में उमंग-उत्साह है। लेकिन अटेन्शन क्या रखना हे। ऐसा चेहरा सदा ही रहे। अभी के चेहरे का भी फोटो निकालो। रोज इस फोटो को देखो कि ऐसा है या बदल गया है। इस कैमरे से नहीं, दिव्य दृष्टि के कैमरे से अपना फोटो खींच सकते हो। यह कैमरा तो सबके पास है ना? और यह गुम भी नहीं होगा। तो सदा खुशी के और कोई चिन्ह नहीं होना चाहिए। कभी मूड ऑफ वाला चेहरा न हो। कभी माया से हार खाने के कारण दिल-शिकस्त वाला चेहरा न हो। आप सभी हीरो-हीरोइन एक्टर हो, आपको पार्ट है खुश रहना और खुशी बांटना। अच्छा - ओमशान्ति।